December 23, 2024

राम और कृष्ण के इन मुस्लिम परम भक्त जनों पर कोटि-कोटि हिन्दू वारिए, पढ़िये वरिष्ठ पत्रकार डॉ रमेश खन्ना का लेख…

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इतिहास का मतलब हिन्दू मुसलमान नहीं है…

तुलसी हिंदुओं के लिए सबसे बड़े रामभक्त संत है जिन्होंने रामचरित मानस लिखकर राम के चरित्र को घर -घर पहुंचा दिया। तुलसी के सबसे अच्छे मित्रों में से एक रहीम खानखाना कौन हैं ?रहीम मुसलमान थे,अकबर के सेनापति थे और कवि भी। तुलसी के पास एक स्त्री अपनी बेटी की शादी के लिए धन मांगने आयी तो तुलसी ने कहा मैं तो संत हूँ मेरे पास धन कहाँ ? उन्होंने एक चिट लिखी और रहीम के पास उसे मदद के लिए भेज दिया। चिट में लिखा था–

सुरतिय-नरतिय-नागतिय-अस चाहत सब कोई।

बदले में रहीम ने उस स्त्री को खूब सारा धन दिया और दोहा पूरा करके यूं भेजा है–

गोद लिए हुलसी फिरे तुलसी से सुत होय।।

इसी तरह रहीम को दान देने का बहुत चाव था वे दान देते समय अपनी आंखो को बंद कर लेते थे ताकि पता न चले की किसको कितना दे रहे हैं। तुलसी दास ने उन्हें दोहा लिखा 

ऐसी देनी देश जू कित सीखे हो सैन 

ज्यों-ज्यों कर ऊंचे उठे त्यों त्यों नीचे नैन 

तब रहीम ने जवाब दिया कि 

देनहार कोई और है लेन हार कोई और

लोग भरम हम पे करें तासे नीचे नैन 

इस्लामी राज में तुलसी को अकबर ने नही सताया बल्की  सम्मान दिया सीता के पृथ्वी प्रवेश के बाद अयोध्या नष्ट हो गई थी। सीता की समाधि का एक टीला मात्र बचा था तुलसी साहित्य में वर्णित महलों के अनुसार अकबर ने बीरबल मानसिंह और टोडरमल को आदेश देकर उन भवनों को बनाने का आदेश दे कर अयोध्या को फिर से बसाया 

तुलसी दास को सताया काशी के कट्टर पंडितों ने इसलिए कि उन्होंने रामचरितमानस अवधी में क्यों लिखी संस्कृति में क्यों नही। एक कारण और भी था राम महा विप्रराज महा ज्ञानी महा शिवभक्त महा विद्वान महा शास्त्रज्ञांनी वैज्ञानिक महा ब्राह्मण रावण के हत्यारे थे। पंडित नहीं चाहते थे राम की कथा लिखी जाए। एक हिन्दू संत का महात्म्य फैल रहा था लेकिन इससे अकबर को कोई परेशानी नही हुई। तुलसी और रहीम की मित्रता से आपने क्या सीखा?

आपको लगता है तलवार दिखाकर,जबरन जय श्री राम बुलाकर तुम राम और हिन्दू धर्म का सम्मान कर रहे? तुम मूर्ख लोग हो जो अपनी जड़ें काट रहे हो।तुम्हे न धर्म का पता है न संस्कृति का। तुलसी ने ही लिखा है–

रामहि केवल प्रेम पियारा। 

और तुम क्या कर रहे जिस चरित्र में इतना आकर्षण है जिससे मुसलमान कवि तक खिंचे चले आते थे उन्हें तुम क्या बना रहे हो।

अमीर खुसरो, रसखान,नजीर अकबराबादी ,आलम सहित दर्जनों कवि होंगे जिन्होंने कृष्ण के प्रेम में डूबकर कविताएं लिखी हैं उन्हें पैगम्बर तक माना है। क्या उन्होंने ऐसा तलवार के डर से किया है नही ये कृष्ण और राम के चरित्र का आकर्षण था। सैय्यद इब्राहिम रसखान बन जाते हैं और लिखते हैं कि

मानुस हौं तो वही रसखान, बसौं मिलि गोकुल गाँव के ग्वारन। 

जो पसु हौं तो कहा बस मेरो, चरौं नित नंद की धेनु मँझारन॥ 

पाहन हौं तो वही गिरि को, जो धर्यो कर छत्र पुरंदर धारन। 

जो खग हौं तो बसेरो करौं मिलि कालिंदीकूल कदम्ब की डारन॥

” यदि मैं अगले जन्म में मनुष्य बनूँ तो यही रसखान बनूँ,अगर पत्थर बनूँ तो वही पत्थर बनूँ जिसे कृष्ण ने उंगली पर धारण किया था,गाय बनूँ तो वही जिसे कृष्ण चराने जाते थे।एक मुसलमान कवि राज पाट से निकलकर अन्तिम सांस वृंदावन में लेता है?क्या उन्हें किसी का डर था उस समय तो इस्लामी शासन ही था।

नजीर अकबराबादी ने जाने कितने पद कृष्ण पर लिखे हैं-

‘तू सबका ख़ुदा, सब तुझ पे फ़िदा, अल्लाहो ग़नी, अल्लाहो ग़नी

हे कृष्ण कन्हैया, नंद लला, अल्लाहो ग़नी, अल्लाहो ग़नी

तालिब है तेरी रहमत का, बन्दए नाचीज़ नज़ीर तेरा

तू बहरे करम है नंदलला, ऐ सल्ले अला, अल्लाहो ग़नी, अल्लाहो ग़नी.’

संभवत: पहली बार अकबर के जमाने में (1584-89) वाल्मीकि रामायण का फारसी में पद्यानुवाद हुआ। शाहजहाँ के समय ‘रामायण फौजी’ के नाम से गद्यानुवाद हुआ। 

औरंगजेब के युग में चंद्रभान बेदिल ने फारसी में पद्यानुवाद किया। तर्जुमा-ए-रामायन एवं अन्य रामायनों की रचना वाल्मीकि रामायण के आधार पर की गई। मगर जहाँगीर के जमाने में मुल्ला मसीह ने ‘मसीही रामायन’ नामक एक मौलिक रामायण की रचना की, पाँच हजार छंदों वाली इस रामायण को सन् 1888 में मुंशी नवल किशोर प्रेस लखनऊ से प्रकाशित भी किया गया था। 

गोस्वामी तुलसीदास के सखा अब्दुल रहीम खान-ए-खाना ने कहा है ‘रामचरित मानस हिन्दुओं के लिए ही नहीं मुसलमानों के लिए भी आदर्श है।’ 

‘ रामचरित मानस विमल, संतन जीवन प्राण, 

हिन्दुअन को वेदसम जमनहिं प्रगट कुरान’ 

फरीद, रसखान, आलम रसलीन, हमीदुद्‍दीन नागौरी, ख्वाजा मोइनुद्‍दीन चिश्ती आदि कई रचनाकारों ने राम की काव्य-पूजा की है। कवि खुसरो ने भी तुलसीदासजी से 250 वर्ष पूर्व अपनी मुकरियों में राम को नमन किया है। 

सन् 1860 में प्रकाशित रामायण के उर्दू अनुवाद की लोकप्रियता का यह आलम रहा है कि आठ साल में उसके 16 संस्करण प्रकाशित करना पड़े। वर्तमान में भी अनेक उर्दू रचनाकार राम के व्यक्तित्व की खुशबू से प्रभावित हो अपने काव्य के जरिए उसे चारों तरफ बिखेर रहे हैं। अब्दुल रशीद खाँ, नसीर बनारसी, मिर्जा हसन नासिर, दीन मोहम्मद्‍दीन इकबाल कादरी, पाकिस्तान के शायर जफर अली खाँ आदि प्रमुख रामभक्त रचनाकार हैं। 

लखनऊ के मिर्जा हसन नासिर – उन्होंने श्री रामस्तुति में लिखा है – 

कंज-वदनं दिव्यनयनं मेघवर्णं सुन्दरं। 

दैत्य दमनं पाप-शमनं सिन्धु तरणं ईश्वरं।। 

गीध मोक्षं शीलवन्तं देवरत्नं शंकरं। 

कोशलेशम् शांतवेशं नासिरेशं सिय वरम्।।

ये सब डरा कर नही हुआ है ।संस्कृति रक्षा का मुखौटा लगाकर ये लोग इस देश की संस्कृति की जड़े खोद रहे हैं और इनको गुमान है कि ये हिंदुत्व और राम का नाम कर रहे हैं

डॉ रमेश खन्ना

 वरिष्ठ पत्रकार

 हरिद्वार (उत्तराखंड)

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