December 23, 2024

श्री गोवर्धन पुरी के 144वें पीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी श्री निरंजनदेव तीर्थ जी महाराज की 28 वीं पुण्यतिथि असम के गुवाहाटी में आयोजित…

0

श्री गोवर्धन पुरी के 144 वें पीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी श्री निरंजनदेव तीर्थ जी महाराज की 28 वीं पुण्यतिथि असम गुवाहाटी में मनायी गयी।

सनातन, मृत्युञ्जयी, वैदिक भारतीय संस्कृति के समुद्धारक साक्षात् श्रीमत्शङ्कर स्वरूप आद्य जगद्गुरु शंकराचार्य भगवत्पाद ने धर्म जागरण एवं धर्म संरक्षण की परम्परा अविच्छिन्न रखने के लिए पुण्यभूमि भारत के चारों कोनों में चार शाङ्कर मठों की स्थापना की और घोषणा की कि इन पीठों पर अभिषिक्त शङ्कराचार्य मेरे ही स्वरूप होंगे। इन वेदवेदाङ्ग–श्रौताचार-विचार परिनिष्ठ विमलात्मा, अमलात्मा महात्मा ब्रह्मज्ञानियों को मेरा ही स्वरूप माना जाये। ‘मठाम्नाय महानुशासन’ में उद्घोषित इस घोषणा के अनुरूप इन पीठों पर अभिषिक्त आचार्यों को भारत की धर्मप्राण जनता महाप्राज्ञ मनीषी एवं धर्माचार्य सभी साक्षात् शङ्कराचार्य मानकर ही पूजन, अभिनन्दन और वन्दन करते हैं। समस्त सनातनधर्मी जगत् में शङ्कराचार्य की प्रतिष्ठा सर्वोपरि है। इन्हीं चतुष्पीठों में से एक पूर्वाम्नाय, गोवर्द्धनमठ पुरीपीठ के 144वें जगद्गुरु शङ्कराचार्य थे, अनन्त श्रीविभूषित श्रीमन्निरञ्जनदेवतीर्थजी महाराज जो परमपूज्य पुरीपीठाधीश्वर श्री भारतीकृष्णतीर्थ जी महाराज के लोक विश्रुत यशस्वी उत्तराधिकारी बने।

आचार्य शङ्कर ने समग्र भारत में शास्त्रार्थ में विजय प्राप्त करने के पश्चात् वैदिक धर्म और संस्कृति के संरक्षणार्थ चारों दिशाओं में मठ स्थापित किए – उत्तर में बदरीनाथ का ज्योतिर्मठ [जोशीमठ], दक्षिण में शृंगेरी मठ, पूर्व में पुरी का गोवर्धन मठ तथा पश्चिम में द्वारकापुरी का शारदा मठ विश्वविख्यात है। पुरी के गोवर्धन मठ के प्रथम अधिपति आचार्य आदि शङ्कराचार्य के परम शिष्य सनन्दन [पद्मपाद] थे। उनके बाद 142 आचार्यों ने इस पीठ के अधिपति पद को सुशोभित किया, जो आजन्म ब्रह्मचारी थे। 143 वें आचार्य के रूप में स्वामी भारती कृष्ण तीर्थ अभिषिक्त हुए, जो दाक्षिणात्य ब्राह्मण थे। वे संस्कृत, हिन्दी, अंग्रेजी तथा विज्ञान के प्रकाण्ड पण्डित एवं ओजस्वी वक्ता थे। उन्होंने लुप्त हुई, भारतीय गणित पद्धति पर ‘वैदिक गणित’ नामक ग्रन्थ अंग्रेजी में लिखा, जिससे उन्हें अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्धि मिली। इस पुस्तक का अध्ययन कर पहली बार विश्व के गणितज्ञ वैदिक गणित के प्रति उन्मुख हुए । विज्ञान में अधिस्नातक उपाधि भी इन्हें प्राप्त थी। उनका देहावसान 2 फरवरी 1958 को बम्बई में हुआ। उनको अलौकिक प्रतिभा के कारण इस मठ को पर्याप्त प्रतिष्ठा मिली।

उन्होंने अपने उत्तराधिकारियों की सूची बनाई थी, जिसमें जयपुर के महाराज संस्कृत कॉलेज के तत्कालीन अध्यक्ष पण्डित चन्द्रशेखर द्विवेदी का नाम भी था। इन के नाम को देखकर पुरी पीठ की स्थाई समिति ने उक्त आसन ग्रहण करने का इनसे अनुरोध किया। तब पं. द्विवेदी ने लोककल्याणार्थ एवं धर्मरक्षणार्थ अपने परिवार तथा पद का परित्याग कर संन्यास ग्रहण किया। आचार्य द्विवेदी की संन्यास दीक्षा तथा गोवर्धन पीठाधीश्वर के रूप में अभिषेक पश्चिम के द्वारकापीठाधीश्वर स्वामी अभिनव सच्चिदानन्द तीर्थ के द्वारा सम्पन्न हुआ। संन्यास दीक्षा के बाद उनको ‘निरञ्जन देवतीर्थ’ नाम दिया। 1964 से 1995 तक उन्होंने पुरी के शङ्कराचार्य का पद सुशोभित किया। बसंत पंचमी 4 फरवरी 1995 को अर्धकुम्भ मेला प्रयागराज में उन्होने अपने विद्वान तपस्वी दण्डी शिष्य स्वामी अधोक्षजानंद देवतीर्थ को गोवर्धन पीठ के 145 वें शंकराचार्य के पद अभिषिक्त किया।
आदि शङ्कराचार्य के द्वारा पूर्व दिशा में स्थापित जगन्नाथ पुरी [उड़ीसा] के गोवर्द्धन पीठ के 86 वर्षीय परमाचार्य स्वामी श्री निरञ्जन देव तीर्थ ने अपने भौतिक शरीर का, भाद्रपद शुक्ला प्रतिपदा शुक्रवार 13 सितम्बर, 1996 को, काशी में परित्याग कर दिया। गोवर्धन मठ पुरी 144 वें पीठाधीश्वर परमाचार्य के 28 पुण्यतिथि पूर्वोत्तर भारत के केन्द्र असम की राजधानी गुवाहाटी में मठ के 145 वें वर्तमान शंकराचार्य स्वामी श्री अधोक्षजानंद देवतीर्थ जी महाराज के पावन सानिध्य स्थानीय भक्तों द्वारा धूमधाम से मनायी गयी भारी संख्या में उपस्थित सनातन धर्मावलम्बियों ने चरण पादुका पूजन किया और परमाचार्य के चित्रपट पर श्रद्धांजली अर्पित किया।

सनातन, मृत्युञ्जयी, वैदिक भारतीय संस्कृति के समुद्धारक साक्षात् श्रीमत्शङ्कर स्वरूप आद्य जगद्गुरु शंकराचार्य भगवत्पाद ने धर्म जागरण एवं धर्म संरक्षण की परम्परा अविच्छिन्न रखने के लिए पुण्यभूमि भारत के चारों कोनों में चार शाङ्कर मठों की स्थापना की और घोषणा की कि इन पीठों पर अभिषिक्त शङ्कराचार्य मेरे ही स्वरूप होंगे। इन वेदवेदाङ्ग–श्रौताचार-विचार परिनिष्ठ विमलात्मा, अमलात्मा महात्मा ब्रह्मज्ञानियों को मेरा ही स्वरूप माना जाये। ‘मठाम्नाय महानुशासन’ में उद्घोषित इस घोषणा के अनुरूप इन पीठों पर अभिषिक्त आचार्यों को भारत की धर्मप्राण जनता महाप्राज्ञ मनीषी एवं धर्माचार्य सभी साक्षात् शङ्कराचार्य मानकर ही पूजन, अभिनन्दन और वन्दन करते हैं। समस्त सनातनधर्मी जगत् में शङ्कराचार्य की प्रतिष्ठा सर्वोपरि है। इन्हीं चतुष्पीठों में से एक पूर्वाम्नाय, गोवर्द्धनमठ पुरीपीठ के 144वें जगद्गुरु शङ्कराचार्य थे, अनन्त श्रीविभूषित श्रीमन्निरञ्जनदेवतीर्थजी महाराज जो परमपूज्य पुरीपीठाधीश्वर श्री भारतीकृष्णतीर्थ जी महाराज के लोक विश्रुत यशस्वी उत्तराधिकारी बने।

आचार्य शङ्कर ने समग्र भारत में शास्त्रार्थ में विजय प्राप्त करने के पश्चात् वैदिक धर्म और संस्कृति के संरक्षणार्थ चारों दिशाओं में मठ स्थापित किए – उत्तर में बदरीनाथ का ज्योतिर्मठ [जोशीमठ], दक्षिण में शृंगेरी मठ, पूर्व में पुरी का गोवर्धन मठ तथा पश्चिम में द्वारकापुरी का शारदा मठ विश्वविख्यात है। पुरी के गोवर्धन मठ के प्रथम अधिपति आचार्य आदि शङ्कराचार्य के परम शिष्य सनन्दन [पद्मपाद] थे। उनके बाद 142 आचार्यों ने इस पीठ के अधिपति पद को सुशोभित किया, जो आजन्म ब्रह्मचारी थे। 143 वें आचार्य के रूप में स्वामी भारती कृष्ण तीर्थ अभिषिक्त हुए, जो दाक्षिणात्य ब्राह्मण थे। वे संस्कृत, हिन्दी, अंग्रेजी तथा विज्ञान के प्रकाण्ड पण्डित एवं ओजस्वी वक्ता थे। उन्होंने लुप्त हुई, भारतीय गणित पद्धति पर ‘वैदिक गणित’ नामक ग्रन्थ अंग्रेजी में लिखा, जिससे उन्हें अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्धि मिली। इस पुस्तक का अध्ययन कर पहली बार विश्व के गणितज्ञ वैदिक गणित के प्रति उन्मुख हुए । विज्ञान में अधिस्नातक उपाधि भी इन्हें प्राप्त थी। उनका देहावसान 2 फरवरी 1958 को बम्बई में हुआ। उनको अलौकिक प्रतिभा के कारण इस मठ को पर्याप्त प्रतिष्ठा मिली।

WhatsApp Group Join Now
Telegram Channel Join Now
Instagram Channel Join Now

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You may have missed